प्यारी बेटी

घर मे जब गूँजी किलकारी दिखने में वह छोटी थी।।
झूम उठा खुशियों से आँगन पता चला वह बेटी थी।।।

कुछ के मुख उदास थे क्योंकि उनकी सोच छोटी थी
लेकिन मेरा मन खुशियों से भरा था क्योंकि वह बेटी थी।।।

एक दिन ऐसा आया वह बेटी कुछ बड़ी हुई।
पापा पापा कह कर वह अपने कदमों में खड़ी हुई।।।

जब उसने अपने मन की खुशियों को जड़ा हुआ था।।
तब सामाज आगे आकर उसके रास्ते पर खड़ा हुआ था।।।

हर एक पहलू पर समाज का अपना बेड़ा लगा हुआ था।।
इतना होते हुए समाज मे उसका परचम गड़ा हुआ था।।।

भूल कर जालिम समाज को अपना कदम बढ़ाया था।।
पूरे समाज में उसने अपना परचम लहराया था।।।


हरदम मेरे गलियेचे पर  शीशक शीशक कर रोया करती थी।
पता नही था मुझे किन मनचलो की नजर उस पर रहती थी।।

भूल बैठा था समाज की सोच तो इतनी गंदी थी।।
इस समाज के हर पहलू पर सब की आंखे अंधी थी।।

मुझे पत्ता नही चला कब वह किशोर से बड़ी हुई
हर रहो पर उसके एक नई मुशीबत खड़ी हुई।।
आखिर कब तक बचा कर रहुगा मैं अपनी इस छोटी गुड़िया को
कुछ तो सरम करो जालिम  अब तो जीने दो इस छोटी सी पुड़िया को ।।।।

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